Maharana Pratap kaun the : भारत जैसे देश के लिए यह गौरव की बात है कि इस मिट्टी से ऐसे ऐसे वीर सपूतों ने सिर्फ जन्म ही नहीं लिया बल्कि मुगलों जैसे क्रूर नर्भक्षियों नेस्तनाबूत भी किया है । भारतीय इतिहास गवाह है कि इस मिट्टी में राजपूताने का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है । इस देश के रणबाकुरों ने जाति,धर्म , और स्वाधीनता कि रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के किए जरा से भी संकोच नहीं किया है । भारत माता की कोख से एक से बढ़कर एक वीर सपूतों ने जन्म लिया । यहां तक कि अपने सर्वसुखो को त्याग कर अपने मातृभूमि की रक्षा की । वीरों की इस भूमि में राजपूतों के छोटे बड़े कई राज्य रहे है जिन्होंने बिना एक पल गवाएं अपने प्राण दे दिए । बात कर रहे है वीर महाराणा प्रताप की । जिनके त्याग पर संपूर्ण भारत का गर्व रहा है। मेवाड़ राज्य का स्थान अलग रहा है जिसमें इतिहास के कई गौरवशाली वीर बप्पा रावल, खुमार प्रथम ,महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा , उदय सिंह और फिर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया । हैरानी की बात यह है कि भारत में ऐसे वीर सपूतों का इतिहास कहीं दिखता ही नहीं । महाराणा प्रताप की परिभाषा क्या है शायद ही कोई जानता है । महाराणा प्रताप जैसे वीर सूरों ने आक्रमणकारियों को धूल चटाई । बल्कि उनसे लोहा लेने में तनिक पीछे नहीं रहे । गौरवपूर्ण संबोधन केवल महाराणा प्रताप को ही मिला ।
Akbar ki tulna maharana pratap se kyu ki gai
आजादी के बाद देश जिनके हाथों में था उन्होंने मुगलों की बुलंदियों को ऐसे किताबों मे पिरोया है जैसे उन्होंने इस देश के लिए आहुति दी हो । मुगल सम्राट अकबर हजारों लोगों की हत्या कर महान कहलाता है लेकिन वहीं वीर महाराणा प्रताप ने हजारों की जान बचाई वह महान नहीं क्यों नहीं कहलाए । उनकी वीरता के कसीदे और उनकी उपलब्धियों को क्यों नजर अंदाज किया गया। यह शर्मनाक तो है । दरअसल हमारे देश का इतिहास अंग्रेजो और कम्युनिस्टों ने लिखा है जिन्होंने देश पर अत्याचार किया जुल्म दहाए , उनकी उपलब्धियों की किताबों समाहित कर दिया । भारत को लूटने , निर्मम हत्यारे अकबर जैसे आक्रमकारियों ने देश को बर्बाद किया । अब आते है असल बात है अकबर द्वारा दिए गए झूठे आश्वासन , उच्चस्थान, पदाधिकारी प्रलोभन के वशीभूत होकर कई राजपूत राजाओं ने उसका प्रभुत्व मान लिया था । वहीं कुछ वीर सपूतों ने अपना गौरव खो दिया था । ऐसा आभास होता की मानो पूरा राजस्थान ही अपना आत्म गौरव खो चुका था। तब निराशा के ऐसे समय में मेवाड़ के महाराणा प्रताप का मातृभूमि की रक्षा के लिए उदय हुआ। आपको बता दें कि वीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1954 को कुल्लभगण दुर्ग में हुआ था। मां का नाम जयंती और पिता उदय भसय थे । महाराणा प्रताप बड़े थे बचपन से ही युद्ध की कला विषय में रुचि थी । जिस वक्त महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ उस समय मुगल आक्रमणकारी अकबर का साशन था ।क्रूरता से भरा हुआ अकबर बहुत ही कुटिल प्रवित्ती का इंसान था। अकबर हिंदुओ को साथ रखकर उन्ही हिंदुओ को मरवाता था । उस समय एक राजा थे भद्हू अकबर ने इनकी मूर्खता का खूब फायदा उठाया था । अकबर ने हिन्दू स्वाभिमान को कुचलने के लिए हर वो काम किए जिससे हिन्दू को कुचला जा सके। इसलिए अकबर हिन्दू राजाओं से झूठ बोलता , झूठा आश्वासन देता और फिर काम का अंजाम होने के बाद मुकर जाता।
jab Akbar ne maharana pratap ke yahan hamla kiya
अकबर के शासन में हिंदुओ के साथ इतनी क्रूरता हुई की उसका व्याख्यान करना अधूरा रह जाएगा। हिन्दू राजाओं को तरह तरह के लालच देकर उनकी बेटियों के साथ उनके सेनापति दुराचार करते थे उन्हे दरबार में ले जाकर क्रूरता की सारी हदें पार करते थे । शायद वह भारतीय इतिहास का सबसे काला इतिहास रहा है। लेकिन इसके विपरीत इस काल खंड में भी मेवाड़ बूंदी तथा सिरोही वंश के राजा अंतिम समय तक अकबर से संघर्ष करते रहे। उधर मेवाड़ के राणा उदयभान का स्वतंत्र रहना अकबर को अखरता था। उदय सिंह विलासी प्रवत्ति के थे उदय सिंह को शिकस्त देने के लिए एक बार अकबर ने भारी भरकम सेना के साथ मेवाड़ पर हमला बोल दिया । विलासी उदय का मनोबल बहुत गिरा हुआ था। इसलिए वह मैदान छोड़कर भाग गए। अरावली की पहाड़ियों में जाकर छिप गया । और वही उदय ने उदयपुर नामक नगर बसाया। उदय ने मृत्यु से पहले अपने पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। फिर कुछ दिन बाद जगमल्ल के खिलाफ उनके साथियों ने विद्रोह कर दिया। और फिर महाराणा प्रताप को अपना नया राजा घोषित कर दिया । महाराणा प्रताप के लिए अकबर से युद्ध लडना आसान नहीं था फिर भी उन्होंने दरबार लगाकर अपने साथियों में जोश भरा । और युद्ध के लिए नई रणनीति बनाई । महाराणा प्रताप ने संकरी घटियो से अकबर की सेना से लोहा लेने की योजना बनाई । अकबर ने महाराणा प्रताप को अपने वश मे करने के लिए चार दूत भेजे लेकिन उनकी मंशा सफल नहीं रही । वे स्वाभिमानी थी । जब अकबर के सारे प्रयास विफल रहे तब हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ। अकबर ने सलीम और भान भसह को युद्ध की जिम्मेदारी दी जिसमे दो लाख सैनिक थे इस युद्ध में महाराणा प्रताप का चेतक बलिदान हो गया । इसके बाद उन्होंने फिर फौज खड़ी की । मुगल सेनापति शाहबाज खान ने है हलबीर नामक एक स्थान पर कब्जा जमाया फिर महाराणा प्रताप ने हमला बोला । मुगल सैनिक भाग खड़े हुए इसके बाद महाराणा प्रताप ने कई किले अधीन कर लिए ।उदय पुर भी कब्जे ने आए गया। इस प्रकार एक के बाद किला महाराणा प्रताप का हो गया । लगातार युद्ध के कारण उनका शरीर कमजोर हो गया और 19 जनवरी 1597 को वो शहीद हो गए। नमन है ऐसे युद्ध को जिसने मातृभूमि के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी ।
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